भारतीय अर्थव्यवस्था में वैश्वीकरण की प्रक्रिया नब्बे के दशक से प्रारम्भ हो गयी जबकि सरकार ने विश्व की प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले रूपये का अवमूल्यन कर दिया। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से वैश्वीकरण ने अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक एकीकरण में गिरावट के मूल्य को पहचाना जिसका उद्देश्य वैश्वीकरण की नवीनकृत प्रक्रिया का निरीक्षण करना है तथा इसको बढ़ावा देना है। भारतीय अर्थव्यवस्था में सन् 2008 के मध्य से वित्तीय संकट रहा है, यह स्थिति अगस्त 2007 से अमरीकी वित्तीय बाजार में पहले पहल उभरी और सितम्बर 2008 में शिखर पर पहुँची। वित्तीय संकट अमेरिका से यूरोप और एशिया के देशों में सम्पूर्ण विश्व में फैल रहा है, यह भी सही है कि पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में वित्तीय उतार - चढ़ाव आते रहते हैं, और इसे स्वीकार जाने लगा है। संसार के सभी देशों में एक सा विकास नहीं है। कुछ देश जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया यूरोप के कुछ देश उच्च स्तरीय अवस्थाओं के हैं। पिछले कुछ दशकों में वैश्वीकरण बहुत तेजी से हुआ है। जिसके परिणामस्वरूप पूरे विश्व भर में आर्थिक सामाजिक राजनीतिक में तकनीकि दूर संचार आदि की उन्नति के माध्यम से वृद्धि हुई है।