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कार्टून चैनलों के देखने से बच्चों में परानुभूति का विकास एवं महत्व | Original Article

डॉ. प्रीति श्रीवास्तब in Shodhaytan (RNTUJ-STN) | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

आजकल टेलीविजन बच्चों के दृष्टिकोण और मूल्यो के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। आज का यूग विज्ञान का युग है। विज्ञान ने इंसान की जिंदगी बदल कर रख दी है। विज्ञान एंव तकनीकी विकास हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करतें है। दूरदर्शन दर्शको के उदारवादी संचार माध्यम के रूप में अच्छा प्रभाव डालता है। अधिकतर बच्चे अपना जीवन टेलीविजन के ईर्द गिर्द पाते है। अधिकतर अविभावक अपने बच्चों के अध्ययन एंव भविष्य के बारे में चिन्ताग्रस्त रहते है। क्योकि अधिकतर बच्चे नाश्ता, खाना, खेलना, सोने के समय तक चुम्बक की तरह दूरदर्शन के निकट रहते है। अभिभावक बच्चों द्वारा लगातार टेलीविजन देखने के कारण उनके उपर हो रहे नकारात्मक प्रभाव के कारण चिंताग्रस्त रहते है। परंतु आजकल टेलीविजन से बच्चों का बौद्धिक विकास आध्यात्मिक विकास, नैतिक विकास एंव मूल्यों पर सकारात्मक प्रभाव भी पड़ते है। क्योकि एक सिक्के के दो पहलू होते है अच्छाई और बुराई। कहा जाता है कि लोग अच्छा रास्ता कम चुनते है, गलत रास्ता जल्दी नजर आता है। आजकल आधुनिकीकरण एवं महगाई के कारण माता पिता, दोनों ही काल पर जाते है। महिलाओं को घर के बाहर जाना पड़ता हैं आजकल संयुक्त परिवार के विघटन एंव एकाकी परिवार के चलन होने के कारण बच्चों को अकेला रहना पड़ता है। इसलिए टेलीविजन दादी-दादा नानी -नाना इत्यादि की तरह परिवार की कमी पूरी करता हैं। कार्टून का शाब्दिक अर्थ : मजाक, विनोदी ड्राइंग या व्यंग्य में ही आमतौर से प्रयोग किया गया। वर्तमान में कार्टून कला है, जो ड्राइंग चित्र या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और एनीमेटेड डिजिटल कार्टून आदि से सम्बन्धित है। प्रस्तुत शोध पत्र में इस विषयक बच्चों में परानुभूति के विकास एंव महत्व को प्रतिपादित किया गया है।