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तुलसीदास की सामाजिक चेतना | Original Article

हर्षा शर्मा in Shodhaytan (RNTUJ-STN) | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

भारतीय समाज में कई ऐसे संत हुए है, जिन्होंने भारत की सामाजिक चेतना को पूर्णत: प्रभावित किया है | तथा उन्हें मनोकूल दिशा दी है | इन्ही संतों ने समाज में नेतृत्वकारी भूमिका अदा की | प्राचीन समय में जहाँ सामती लोग सामाजिक जीवन के सारत्व को उजागर कर रहे थे, वहीं दूसरी ओर इसका विरोध करते हुए संतो का भक्ति आन्दोलन पूरी तरह मुखरित हुआ | तुलसीदास जी का अंतिम सरोकार केवल लोक-कल्याण रहा और इसी लोक कल्याण के लिए उन्होंने सामाजिक आचार-विचार की प्रतिष्ठा को आवश्यक माना | तुलसीदास जी एक ऐसे संत थे, जिनकी रचनायें. व्यक्ति व समाज दोनों का कल्याण करने वाली है | तुलसीदास जी ने परम्परागत भारतीय समाज व्यवस्थाओं की सीमाओं में ही अपने युग की समस्याओं के समाधान दिये है | वर्तमान में भी उनके विचारों को साथ लेकर वर्गों की सामजिक मर्यादा, के साथ समाज में रहकर स्वार्थगत् संघर्षों को छोड़कर समाज को उन्नत बनाने की आवश्यकता है | तुलसीदास जी ने विभिन्न लोक विश्वासों व लोक आदर्शों को ध्यान में रखकर परम्परागत भारतीय समाज की स्थापना की | तुलसीदास जी द्वारा व्यक्ति के उच्च संस्कारों व आदर्शों को सापेक्षित श्रेष्ठता के साथ प्रतिपादित किया गया | वर्तमान में भी तुलसीदास जी हमारे समाज को अपने विचारों ओ साहित्य से प्रकाशित कर रहे है, व समाज में उनका स्थान अद्वितीय है |