भोपाल संभागान्तर्गत सतत् समग्र मूल्यांकन के क्रियान्वयन में शिक्षकों की कठिनाइयों के अध्ययन | Original Article
आज की सामाजिक आर्थिक और सांस्कृतिक परिस्थितियों में शैक्षिक उपलब्धि सबसे अधिक महत्व रखती है। प्राचीन काल से ही विद्यार्थियों की उपलब्धि परीक्षा किसी -न-किसी रूप में होती रही हैं। जब गुरू के पास विद्यार्थी ज्ञानार्जन के उद्देश्य से जाते थे, तो पहले उन्हे आश्रम में रहना पडता था, जिससे उनके ज्ञान एंव जिज्ञासाभाव की परीक्षा ली जा सके। तक्षशिला और नालंदा में जो विद्यार्थी प्रवेश पाना चाहते थे उन्हे पण्डित द्वारा पूछे गये प्रश्नों के उत्तर देना होते थे। आधुनिक समय में स्कूलों में औपचारिक शिक्षा की शेरूआत से ही उपलब्धि पर विशेष महत्व दिया जाता है। जब से शिक्षा के क्षेत्र में व्यक्तिगत भिन्नता के विचार को महत्व मिला, तब से यह आवश्यक समझा जाने लगा कि बालकों की व्यक्तिगत विशेषताओं एवं उनके द्वारा अर्जित ज्ञान के आधार पर शिक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिए। अतः स्कूलों में उपलब्धि के आधार पर छात्र का चयन और विभेदीकरण किया जाता है, जिससे उनके विकास का मार्ग प्रशस्त हो सके। स्कूलों से बहुत से छात्र कालेज व उच्च शिक्षा के लिए कई संस्थानों में जाते है। अतः यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि बालकों मे आवश्यक योग्यता है या नहीं तभी वे उच्च शिक्षा का लाभ उठा सकेंगे। स्कूलो में बालकों के उपलब्धि स्तर को निश्चित करना शैशिक्ष व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण कर्त्तव्य है। प्रस्तुत शोध पत्र में इस विषयक भोपाल संभागन्तर्गत समग्र मूल्याकंन के क्रियान्वयन में शिक्षकों की कठिनाईयों के अध्ययन को प्रतिपादित किया गया है।