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शासकीय शिक्षण संस्थानों के विस्तार का अध्ययन “ग्वालियर जिले के संदर्भ में’’ | Original Article

मृदुलता सिकरवार मोनिका मालवीय in Shodhaytan (RNTUJ-STN) | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

किसी भी देश का विकास वहां की शिक्षण संस्थानों और उनके विस्तार से सीधा जुड़ा हुआ होता है। एक देश का विकास शिक्षा के द्वारा तीव्र गती से होता है और शिक्षा के लिए शिक्ष़ण सस्थानों का सही से विकास होना चाहिए। भारत में प्राचीन काल से ही शिक्षा को बहुत महत्व दिया है क्योंकि भारत देशवासियों की यही मान्यता रही है कि विद्या रूपी धन सबसे महान है। प्राचीन काल में गुरूकुल पद्धति और तक्षशिला एंव नालंदा आदि विश्वविद्यालय इस बात के साक्षात उदाहरण है। शिक्षा और उच्च शिक्षण संस्थानों के कारण ही भारत विश्व गुरू कहा जाता है। प्राचीन काल में सामाजिक, शैक्षणिक एंव सार्वजनिक संस्थानों को ही समानता का अधिकार दिया था जिसके परिणाम स्वरूप संस्थानों में अस्त्र, शस्त्र तथा पारिस्थितिकीय शास्त्र विद्या का ही गहन अध्ययन किया जाता था परन्तु धीरे-धीरे समय के साथ परिस्थितियां बदलती गई और शिक्षा में परिवर्तन होते गए इसके परिणाम स्वरूप ग्वालियर जिले के भी शिक्षण संस्थानों में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए। ग्वालियर में शिक्षण संस्थानों की कोई कमी नही है और ना ही संपूर्ण भारत में पंरतु सभी शासकीय संस्थान एक जैसे नहीं होते है कुछ तो बहुत प्रसिद्ध होते है तो कुछ नाम मात्र होते है शिक्षा का उत्तरदायित्व मूलत़ राज्य सरकार का होता है केंद्र सरकार तो शिक्षा और शिक्षण सस्थानों में तालमेल स्थापित करती है तथा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के माध्यम से उच्च शिक्षा का स्तर तय करती है और अनुसंधान तथा वैज्ञानिक एंव प्राविधिक शिक्षा की व्यवस्था करती है शिक्षा के विकास का कार्य देश की केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों मिलकर करती है पिछले 15 वर्षो से शिक्षा और शिक्षण संस्थानो का अधिक विकास हुआ है। ‘‘धरती उर्वरा हो तभी फसल होती है ठीक उसी प्रकार से शिक्षण सस्थानों का भी अच्छा होना जरूरी है तभी शिक्षा अच्छी होती है’’ स्वतंत्रता से पहले शिक्षा का इतना विकास नहीं हुआ था किंतु जीवन को सही दिशा शिक्षा के द्वारा ही प्राप्त होती है और इसके लिए शिक्षण संस्थानों की बहुत आवश्यक भूमिका होती है