प्रेमचन्द के कथा साहित्य में सत्री विमर्श | Original Article
उपन्यास मानव-जीवन का समग्र रूप से चित्रण करने वाली सशक्त साहित्यिक विधा है मानव-जीवन की अनेक घटनाओं का चित्रण उपन्यासकार अपने उपन्यासों में पात्रों अथवा चरित्रों के माध्यम से साकार करता है। नारी तथा पुरूष मानव-जीवन रूपी इन्ही दो पहियों के बल पर अग्रसर होता है। समाज में स्त्री-पुरूष का समान महत्व है परिवर्तन प्रकृति का नियम है और समाज में स्त्री-पुरूषों के जीवन में भी परिवर्तन होता है। इस परिवर्तन का प्रतिविम्ब हम प्रेमचन्द के उपन्यासों में देख सकते है। क्योंकि उपन्यास अपने युग की झाँकी लेकर उपस्थित होते है। समाज मे यह परिवर्तन विशेषतः नारी जीवन में अधिक दिखाई देता है समाज में उसको कभी देवता के उदात स्थान पर विभूषित किया गया था, तो कभी उसके साथ दासी जैसा व्यवहार किया गया। कभी वह पुरूष के प्रेरणदात्रीं बनी है, तो कभी उसका मूल्य मनबहलाव के खिलौने से अधिक नहीं माना गया।