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पूर्वी राजस्थान में सामाजिक चेतना के विकास में स्त्री सहभागिता (सन् 1920-1947 तक का अध्ययन) | Original Article

डॉ स्मिता मिश्रा in Shodhaytan (RNTUJ-STN) | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

ब्रिटिश आगमन से पूर्व पूर्वी राजस्थान में परम्परागत सामाजिक ढॉचा यथावत बना रहा था। मध्य युग में मुस्लिम आक्रान्ताओं के व्यापक आक्रमणों से महिलाओं को बचाने के लिऐ कई तात्कालिक निर्णय लिये गये जैसे पर्दा प्रथा बाल विवाह कन्या वध तथा सती प्रथा आदि। इन सब स्थितियों के बाद भी मध्ययुगीन भारतीय स्त्रियों को युरोपीय स्त्रियों की तुलना में अधिक स्वायत्तता तथा अधिकार प्राप्त थे।प्रशासनिक सहयोग के लिए रानियॉ अपनी जागीरों में कर्मचारियों की नियुक्ति करती थी। राजघरानों मे महिलाओं के सैनिक प्रशिक्षण की व्यवस्था की थी। 20वीं शताब्दी में राजनीति व प्रशासन में सम्मानित राजमाताओं तथा रानियों आदि के परम्परागत अधिकारों को समाप्त करने या उन अधिकारों में कटौती करके उनके हक में सेंध लगाई 19वीं शता. के उत्तरार्द्ध तथा 20वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में नयी ब्रिटिश आर्थिक सामाजिक तथा राजनैतिक व्यवस्थाओं ने समाज में महत्वपूर्ण हलचल पैदा की। पूर्वी राजस्थान में गांधीयुग में जनचेतना का उदय तथा जन सहभागिता का ऐतिहासिक दृष्टि से विशिष्ट सथान है। पूर्वी राजस्थान की चार रियासतें अलवर तथा करौली में राजपूत वंश तथा भरतपुर और धौलपुर में जाटवंश के शासक थे। चारों ही रियासतों में राजशाही थी। ब्रिटिश आगमन के पश्चात ये चारों राज्य सहायक संधियों के माध्यम से ब्रिटिश सत्ता के प्रत्यक्ष प्रभाव में आ गये। इस प्रकार यहॉ दोहरी दासता का युग प्रारंभ हो गया। प्रथम राजशाही तथा द्वितीय ब्रिटिश सत्ता।