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हिन्दी उपन्यासों में वैयक्तिक परिस्थितियों | Original Article

डॉ. राम मनोहर उपाध्याय in Shodhaytan (RNTUJ-STN) | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

भारतेन्दु-युग में अनेक उपन्यासों की रचना हुई, जिनमे ‘भाग्यवती’, ‘नूतन चरित्र’ ‘नूतन  ब्रह्मचारी’ एक अजान ‘एक सुजान’ ‘निस्सहाय-हिन्दू’ ‘विधवा विपत्ति’ ‘जया कामिनी’ आदि उल्लेखनीय है | डॉ.विजयशंकर मल्ल ने श्री फिल्लौरी जी के उपन्यास ‘भाग्यवती’ को हिन्दी का पहला उपन्यास घोषित किया है | लेखकों ने मौलिक उपन्यासों के अतिरिक्त बंगाल के उपन्यासों के भी हिन्दी में अनुवाद किए| बाबू गदाधर ने ‘बंग विजेता’ और ‘दुर्गेश-नन्दिनी’. राधाकृष्णदास ने ‘स्वर्णलता’. प्रतापनारायण मिश्र ने ‘राजसिंह’, ‘इंदिरा’, ‘राधारानी’ आदि राधाचरण गोस्वामी ने ‘जावित्री’, ‘मृण्मयी’ आदि का अनुवाद किया | बाबू रामकृष्ण वर्मा और कार्तिकप्रसाद खत्री ने उर्दू और अग्रेजी के बहुत से रोमांटिक और जासूसी उपन्यासों के अनुवाद प्रस्तुत किये | ‘वस्तुत: भारतेन्दु-युग में अनूदित उपन्यासों की प्रधानता, चरित्र-चित्रण का अभाव, उपदेशात्मकता एवं शैली की अपरिपक्वता दृष्टिगोचर होती है |’’- मानवीय जीवन पर, किसी राजनैतिक पृष्ठभूमि पर, करोड़पतियों की जिन्दगी पर, सड़कों पर बिजनेस और दिन में चना-मूंगफली बेचनेवालों की जिन्दगी पर, भिखारियों पर, स्पोर्ट्स के खिलाडियों और वैज्ञानिकों पर, आधुनिकता पर, अछूतों पर, मध्यवर्ग के अतिरिक्त समाज के अन्य अंगों से सम्बन्धित विषयों पर उपन्यासकारों ने अपनी कलम चलाई है | वस्तुत: हमारे उपन्यासों से हिन्दी साहित्य का विषय-छेत्र, यथार्थ एवं जीवन-दृष्टि विस्तृत होती जा रही है | हमारे साहित्यकार स्वस्थ दृष्टिकोण, व्यापक युग-बोध एवं संतुलित जीवन-दर्शन का उपयोग करते हुए, अभावों की पूर्ति का प्रयास कर रहे है | हिन्दी उपन्यासों में यथार्थ दृष्टि एवं जीवन सम्बन्धी विचारों की उपयुक्ता जीवन्त और यथार्थ बोध से युक्त है |