Article Details

विश्व सन्दर्भ में प्रगतिवादी काव्यधारा एवं आशय | Original Article

डॉ.रामचन्द्र मालवीय in Shodhaytan (RNTUJ-STN) | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

प्रगतिवाद विषयक काव्य और कला के मार्क्सवादी  चिंतन भले ही मार्क्स की तद्विषयक मान्यताओं के साथ माने जाते हों, किन्तु उनके पूर्व भी विश्व में कुछ ऐसे चिंतकों के प्रादुर्भाव हो चुके थे जिनकी मान्यताओं ने इस प्रगतिवाद की आधार-भूमि का निर्माण किया | ऐसे चिंतकों में सेंटबोन टेन, टोलस्टाय, बेलिन्सकी तथा चर्निशेस्की प्रमुख है |  सेंतबोन तथा टेन फ्रांस के उन चिंतकों में से है, जिनकी विचारधारा ने फ्रेंच-साहित्य, अंग्रेजी-साहित्य और विश्व साहित्य को भी एक बड़ी सीमा तक प्रभावित किया | इनकी मान्यताओं के अनुसार कृति का मूल्यांकन करने के लिए उसके रचयिता के जीवन का अध्ययन भी आवश्यक है | अत: चिंतन की अधिकारिणी केवल वही कृति हो सकती है, जिसके रचयिता ने मानव-मन को समृद्ध किया हो, उसके ज्ञान-भंडार की अभिवृद्धि की हो और उसे एक कदम आगे बढ़ाया हो, जिसने अपनी विशिष्ट शैली में सबको सम्बोधित किया हो-एक ऐसी शैली में जो सम्पूर्ण विश्व की शैली प्रतीत हो-जो किसी एक युग की भी शैली हो और युग-युग की भी |  अतः विश्व सन्दर्भ में प्रगतिवादी काव्यधारा युग-युगीन है |