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वर्तमान परिदृश्य में पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन में मूल्य चेतना की आवश्यकता | Original Article

डॉ. रेखा शर्मा in Shodhaytan (RNTUJ-STN) | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

वर्तमान समय में अतिमहत्वकांक्षा और भौतिकता की अधिकता ने मनुष्य को मूल्यों के धरातल पर किस प्रकार धराशायी कर डाला है | यह आज परिवार एवं समाज में व्याप्त विकृतियों पर द्रिस्तिपात करते ही गहन चिंतन में डाल देने हेतु विवश करता है | परिवार रुपी संस्था जो कभी मूल्यों एवं आदर्शों की प्रथम पाठशाला हुआ करती थी, रात्रि विश्राम की मात्र एक सराय बनती जा रही है | ईट और गेरू से बनी दीवारों में जीवन मूल्यों के दम घुटने की आह साफ दिखाई दे रही है | जहाँ पहले प्रेम दया करुणा रुपी संवेदनाओं के साथ वट वृक्ष रुपी वृद्वों का नेह ओ स्नेह बरसता था | आज वह सिर्फ अहम या हमारे लोभ के दायरे में सिमटता नजर अत है, साथ ही बच्चों की परवरिश के एवं व्यक्तित्व विकास के रूप में इलेक्ट्रॅानिक साधनों एवं नौकरों चाकरों का सहयोग पर्याप्त माना जो रहा है, जिससे घरेलू हिंसा एवं अपराधों की श्रेणी में भी इजाफा हुआ है | इनसे प्राप्त परवरिश एवं ज्ञान को लेकर जब युवा होता बालक समाज रुपी धरातल पर उतरता है, तो उसकी व्यावहारिकता का दायरा अत्यन्त ही संकुचित होता है, जिसमें संवेदनाओं का पानी सुख चुका होता है एवं एक प्रतिस्पर्धा का मस्तिष्क कार्य कर रहा होता है, जहाँ मूल्यों एवं विचारों के स्तंभ नहीं होते जिसकी नींव पर खड़ा युवा भ्रामक रास्तों एवं विकृत मानसिकताओं की दीमक की गिरफ्त में शीघ्र ही आ जाता है, जो न सिर्फ समाज को दूषित करता हैं | अपितु समस्त युवा वर्ग एवं भविष्य को भी खतरे में डालता है | अतः आज इस बात की महति आवश्यकता है की भारतीय संस्कृति एवं मूल्य चेतना को पुनः जागृत किया जाये, जिससे भारत के गौरव, मूल्यों एवं संस्कृति को बनाये रखा जा सके |