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भगवतीप्रसाद वाजपेयी की कहानियों में समांजस्य भाव | Original Article

डॉ. राम मनोहर उपाध्याय in Shodhaytan (RNTUJ-STN) | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

आधुनिक युग में कहानीकारों एवं उनकी कहानियों की दृष्टी समांजस्य भाववादी अधिक है | कुछ कहानीकार आधुनिक मनोविज्ञान से प्रभावित होकर मनुष्य के आंतरिक जगत के चित्रण की ओर उन्मुख हुए है | इन कहानीकारों ने मानव मन की गुत्थियों का सूक्ष्म उद्घाटन किया है | कुछ भौतिकवादी दर्शन से प्रभावित होकर वर्ग संघर्ष का चित्रण करते हुए साम्यवादी विचारों का पोषण करते हैं | कुछ कहानीकारों ने काम-वासना को मूल प्रवृत्ति स्वीकारते हुए मनुष्य की क्रियाओं और उसकी विकृतियों का चित्रण किया है | इससे हटकर भगवतीप्रसाद वाजपेयी के कथा साहित्य के शिल्प के द्वारा सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक और आर्थिक परिस्थितियों का सामंजस्य भाववादी चित्रण उन्होंने किया है | उनकी सूक्ष्म दृष्टि विभिन्न सामाजिक परिस्थितियों का समांजस्यपूर्ण चित्रण और वर्णन उपस्थित करते हैं | बकौल डॉ. रमेश सक्सेना इसमें सामाजिक रीतिरिवाज, व्यक्तिगत वेशभूषा और स्थानीय विशेषताओं का समांजस्यपूर्ण चित्रण होता है एवं दूसरे प्राकृतिक के अन्तर्गत प्रकृति का विभिन्न प्रकार के चित्रण भी इसी भाव से होते हैं | कभी-कभी प्रकृति मानव भावनाओं के रंग से रंगी हुई चित्रित होती है, कभी वह विपरीत आचरण करती है और कभी वह मानव समाज को प्रेरणा प्रदान करती है | इस प्रकार सामंजस्यवादी वातावरण और देशकाल वाजपेयी की कहानियों का एक अवश्यक तत्व है | इनका चित्रण भी संतुलित और सानुपातिक ढंग से किया है | देशकाल का चित्रण सदैव कथानक के स्पष्टीकरण एवं चरित्र विकास का साधन होना चाहिए | अवश्यक वर्णनों से कहानियों के कथानक  का प्रवाह और सामंजस्यपूर्ण होने से सरसता आ जाती है | प्रस्तुत आलेख में भगवती प्रसाद वाजपेयी की कहानियों में सामंजस्य भाव का आकलन किया गया है |