नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020ः लागू करना तृतीय विश्वयुद्ध | Original Article
सारांष
सारांश यह है कि आज शिक्षा जगत एक व्यवसाय बन चुका है। क्या व्यवसाय से चरित्र निर्माण हो सकता है। चरित्र से मानव, समाज व राष्ट्र निर्मित होते हैं। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 पर तात्विक विश्लेषण से यह कहा जा सकता है कि स्नातक के बाद विद्यार्थी सीधे विद्यावाचस्पति करेगा, असली तृतीय विश्वयुद्ध यही है कि स्नातक विद्यार्थी कलानिष्णात, दर्शननिष्णात के बिना कैसे विद्यावाचस्पति बनेगा। ऐसा महसूस हो रहा है जैसे नाबालिग अधेड़ को वरमाला पहना रही हो। इस वातावरण में टयूशन माफियाओं का साम्राज्य बढ़ेगा। अब तक तो गाइड कुछ तुच्छ कल्पना कर लेता था फिर तो दास्तव युग शुरु होने के कगार पर होगा इसीलिए नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 लागू करना तृतीय विश्वयुद्ध है। इतना ही नहीं, एक आयोग अनेक समस्या तथा संकाय खण्डिता प्रशासन व विद्यार्थी के लिए महाभारत से कम नहीं है। काश! केन्द्र व प्रान्त सास-बहू के युद्ध से बाहर आ पाए! कब सोया हुआ अध्यापक जागेगा जो उपस्थिति कर्तव्य निर्वहन, निरीक्षक कर्तव्य निर्वहन तथा मूल्यांकन कर्तव्य निर्वहन राष्ट्रहित में करने लगेगा। असल में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 लागू करना तृतीय विश्वयुद्ध इसीलिए है कि शिक्षक बेमौसम की बारिशों से थक व ऊब चुका है और यही शिक्षक इस नीति का मेरूदण्ड है। संविधान अच्छे व बुरे चलाने वालो की मंशा पर साबित होते हैं वैसे ही हमारी नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 सफर करेगी। संविधान में डीपीएसपी भी हैं जो लागू नहीं हो पाए, वैसे चरित्र निर्माण शिक्षा, शिक्षक, शिक्षालय के साथ समाज पर भी निर्भर रहते हैं जो शायद चरित्र निर्माण कर सकें। मैकाले व मैक्सवेल शिक्षा व न्याय से निकालना उतना ही कठिन है जितना जाति से जातिवाद और धर्म से धार्मिकता। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 सांस्कृतिक परिवर्तन और मानसिक बदलाव के आवरण वाली है भारतीय वातावरण साक्षी है संस्कृति विरोधियों द्वारा राष्ट्र खण्डित हुए तथा मानसिक बदलाव हेतु म्यान तलवारें छोड़ रही हैं। भारत को विश्वगुरु की पदवी पर यह नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 बैठा सकती है मगर हर हिन्दुस्तानी हिन्दीवासी को इस नीति के क्रियान्वयन रूपी तृतीय विश्व युद्ध की आग में जलकर सोना बनना होगा।