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भारत में शिक्षा प्रणाली का स्वरूप एवं सामाजिक संघर्ष | Original Article

नरेश कुमार गौतम1 रोहित कुमार2 in Shodhaytan (RNTUJ-STN) | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

 

सारांश

भारत में ज्ञान प्रणाली का स्वरूप बहुत पुराना, प्रतिष्ठित एवं ऐतिहासिक रहा है। वैदिक काल से बौद्ध काल तक शिक्षा के केंद्र गुरुकुल और विहार के तौर पर प्रसारित हुये, जिनका स्वरूप आज भी दिखाई देता है। लेकिन आजादी के बाद, भारत में शिक्षा प्रणाली के स्वरूप में बड़े बदलाव हुये। जिसका असर यह हुआ कि शिक्षा सभी वर्गों और समुदायों के लिए स्वतंत्र हो गई। वैसे इसकी शुरुआत तो लार्ड मैकाले के वक्त से ही कही जा सकती है। जब भारत में आधुनिक शिक्षा का प्रसार जोर शोर से हुआ। यह एक तरह की राजनीतिक चेतना का भी असर था क्योंकि यह वक्त भारत के स्वतंत्रता की ओर बढ़ने का पहला कदम भी माना जाता है। भारत में शिक्षा का परिवर्तन विभिन्न काल खंडों में देखा जा सकता है। लेकिन वर्तमान समय में शिक्षा का अस्तितव कहाँ तक सार्थक हो पाया। साथ ही शिक्षा का सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक स्थिति के साथ महामारी के वक्त हुये बदलाओं की स्थिति पर एक नजरिया पेश करने के साथ ही छात्रों का शिक्षा से क्तवचवनज या सामाजिक शिक्षाविद अनिल सदगोपाल की भाषा में कहा जाए तो च्नेी वनज हुआ है। भारत में शिक्षा का मूल-भूत स्वरूप पश्चिमी ज्ञान प्रणाली पर आधारित है जबकि भारत में भौगोलिक भिन्नता और भाषा-बोली अलग-अलग है। इस प्रपत्र के माध्यम से शिक्षा की प्रमुख नीतियों के साथ वर्तमान में शिक्षा की प्रासंगिकता पर कई अनुत्तरित प्रश्नों की तलाश करने की कोशिश की गई है।